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बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

आपनी बात

देश की चिंता करने वाला कोई नहीं है . सिर्फ बातों से लोगों को बहलाने वालों की कमी नहीं है. आजकल नेताओं पर गौर करे तो सभी वादों का पिटारा लिए घूम रहे हैं . वोटरों को लुभाने के लिए .
बिहार में चुनावी बिगुल बजे कुच्छ दिन हो गया . नेतावों से अपने सूबे के विकाश की बात करे तो उनकी बोलती बंद हो जाती है . तो सोचना यह है की क्या फाइलों में विकाश हुआ है या जमीं पर भी कुच्छ हुआ है ?
overall पुरे बिहार की बात करें तो कहना पड़ेगा की विकाश के रस्ते पर बिहार चल जरुर पड़ा है पर सिर्फ विकाश- विकाश चिल्लाने से कुच्छ होना जाना नहीं है .
जहाँ मै रहता हूँ उसकी बात करें तो आज से 25 साल पहले पिछड़ापन था वह आज भी मौजूद है . इसका सारा श्रेय नेताओं को जाता है .
और जनता तो बेचारी ही है . वोट मांगने आए नेताओं को कैसे नाराज कर सकती है . किसी न किसी को वोट तो देना ही है तो किसी को भी दे दो .
आजादी तो उन नेताओं को ही मिला है जनता  को नहीं. जनता के सामने जो भी नेता- चाहे ओ चोर हो, उचका हो, बैमान हो, डाकू हो, या लफंगा हो पटियों के आधार पर वोट देना ही पड़ता है.
वोट का बहिष्कार करो तो सरकार को आगे बढने की आदत है.

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