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पूजा करती महिलाएं |
बिहार की पारंपरिक लोक संस्कृति
हमारी लोक संस्कृति में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला अनेक गतिविधियों का बड़ा भारी महत्त्व है. उन गतिविधियों कि कड़ी में भैया दूज एक अहम् कड़ी के रूप में देखा जा सकता है. बिहार की लोक परम्परा में जैसे डोमकच, झिझिया आदि हैं उसी तरह भैया दूज का भी महत्त्व काफी बड़ा है. इस पर्व में बहन उपवास रखती है. चौराहे पर गावों-घर की महिलाएं इकठा होतीं हैं. चौराहे को गाय के गोवर से लीपती है. गोबर से ही यमराज कि आकृति बनती हैं. मुसड़ के साथ झावां ईटा कि भी पूजा कि जाती हैं.
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यम के घर और यम कि आकृति |
ऐसी मान्यता है कि यम द्वुतिया के दिन बहन अपने भाई कि लम्बी उम्र के लिए ब्रत रखती है. चौराहे पर गीत आदि गाती है, पहले भाई को श्राप देती है उसके बाद अपने जीभ में रेगनी के कांटे से छेदती है. रुआ को लम्बा कर उसमें घी और सिंदूर लगा कर माला जैसा बनती है. जिसे स्नेह जोड़ना कहते है. वह स्नेह भाई के कलाई पर बांध जाता है. समाठ से यम का घर व यम को झावां पर रख कर कूट देते हैं. इसके पीछे कारण यह है कि यम और भाई के दुशमन को हमने कूट दिया है जिससे हमारा भाई सुरक्षित हो गया अब हमारे भाई को कुछ नहीं होगा.