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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

आधुनिक रंगभाषा और अभिनेता का अस्तित्व




              रंगमंच की - रंग भाषा में सिनेमा की तर्ज़ पर दर्शक को चोकने का चलन जोरो पर है, जिसके चलते रंगमंच परइलेक्ट्रोनिक युक्तियों का उपयोग हो रहा है जो दर्शक को भ्रमित करता और चोकता है | रंगमंच दर्शक को अनुभवप्रदान करता है अगर सार्थक हो तो, दर्शक कुछ महसूस कर आत्मसात करता है | पर रंगमंच की सबसे बड़ीजीवित शक्ति एवम तकनीक अभिनेता आज की इस इलेक्ट्रोनिक - रंगभाषा में अपने अस्तित्व को खोज रहा हें क्योंकि  दर्शक इलेक्ट्रोनिक चमत्कारों को देखता है अभिनेता उस महिमा में  बोने दिखाई देते हें क्यों ? कभी रंगमंच पर अपने अभिनय से दूसरी दुनिया की यात्रा करवाने वाला सर्वशक्तिमान अभिनेता आज के रंगमंच में बेचारा जान पड़ता है | पात्र बन अलग-अलग रस में दर्शको को सराबोर करने वाला आज संवादों को बोलने के लिए तरसता हें वो भी रेकॉर्डेड होते है | रंग - संगीत इलेक्ट्रोनिक ध्वनियों का ज़खीरा हो गया जो अब - कर्ण प्रिये नहीं शोर जान पड़ता हें | बुजर्गो का दर्शक वर्ग ये सब नहीं बर्दाश्त कर पाता जोर आवाजें की, अनावश्यक प्रकाश व्यवस्था और दर्शक चोंका कर घर भेजता है | मैं प्रयोग का विरोधी हु नहीं, पर चाहता हु कि युवा रंग निर्देशक माध्यम की उर्जा को समझे सिनेमा और - रंग मंच दो अलग और सशक्त माध्यम हें दोनों की खूबी है, सहजता और सोम्यता रंगमंच की पहचान हें जिसे बरक़रार रखना भी हम युवाओ की ज़िमैंदारी है | प्रयोग की स्वायतता और मोलीक रंग - मंच के बारे मे सोचे और - रंगसंवाद ताकि अपने भारतीय रंगमंच को सार्थक रंगमंच तक बने.

अब्सर्ड नाटक और हिंदी रंग-मंच


अब्सर्ड नाटक और हिंदी रंग-मंच


Absurd साहित्य ने विशेष रूप से, 1940 में Euorope में जन्म लिया, एक प्रचुर धरा और तेजे से ये विक्सित हुआ, ये साहित्य और इसका आन्दोलन मुख्य धारा का हिस्सा बन गया. ये आन्दोलन कोई आम उद्देश्य, स्पष्ट दर्शन या विचारधारा का आंदोलन नहीं था. ये अव्यवस्तिथ साहित्य आन्दोलन था, इसके मुख्य लेखक, ALBERT CAMUS, JEAN-PAUL SARTRE, N.F.SIMPSON, SAMULE BECKETT, GUNTER GRASS, FARNNADO ARRABAL, EDWARD ALEBE, HEROLD PINTOR, GENET, ARTHUR ADAMOV थे, जिनकी रचनाओ ने साहित्य के सभी परिपाटियों में हलचल पैदा की .
                Absurd शब्द मूलतः बेतुका ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में इस्तेमाल किया, absurd शब्द, संगीत की विद्या का था और इसका मतलब है कोलाहल, गणित में इसका मतलब "कुछ भी" है, अलग-अलग या अराजक है, तर्क की द्रष्टि मैं इस शब्द का अर्थ न्यायविस्र्द्ध, या सौंदर्यशास्त्र में तर्कहीन, absurd मतलब है अप्रासंगिक या विषम. या कुल मला कर जो अप्रासंगिक, व्यर्थ, बेकार और हास्यास्पद हो वो absurd हे. मूलतः. , बेतुका शब्द, संगीत की विद्या का था और कोलाहल का मतलब है, गणित बेतुका मतलब कुछ भी है कि अलग - अलग या अराजक है में तर्क में, शब्द का अर्थ न्यायविस्र्द्ध या सौंदर्यशास्त्र में तर्कहीन, इसका मतलब है अप्रासंगिक या विषम. जो रचना अप्रासंगिक, व्यर्थ, बेकार और हास्यास्पद हो .

Absurd Play की विशेषता क्या है?
               Absurd नाटक मैं स्वप्न, फंतासी, कल्पना, सभी तत्व काव्य-नाटक की तरह होते है, लेकिन मोलिक और ज़मीनी फर्क हे इसकी भाषा , काव्य नाटक मैं भाषा सुन्दर , परिष्कृत और काव्यात्मक होती है. जबकि absurd नाटको की भाषा अपरिष्कृत और भाषिक सोंदर्य के आसपास भी नहीं होती ,उसकी बे-तरतीबी ही उसका हुस्न होती हे ,इसकी भाषा में संवाद के शाब्दिक अर्थ का मतलब नाटक के कथ्य से अलग भी हो सकता .अर्थात संवाद और कथ्य मैं कोई सामंजस्य नहीं होता .ये असमंजस्य चरित्र और कथ्य में "psychic distance" प्रदान करता हे जो बिखरा किन्तु बहु-आयामी लगता हे."psychic distance के कारण भाषा का वर्चस्व तो कम होता हे क्योंकि इस तरह के नाटक का भाषिक और तर्किकी मूल्यांकन संभव नहीं क्योंकि इसको साहित्य की निश्चित परिपाटी पर नापना इसके क्राफ्ट और सोंदार्ये के खिलाफ हे. इन नाटको में हम दुनियादारी , जीवन के यांत्रिकीकरण और उसके दुश-परिणाम की तस्वीर देख पते हे
              कामू के अनुसार, लोगों के व्यवहार कुछ परिस्थतियों में व्यर्थ दिखाई देता हे , "कामू." एक कांच की दीवार के पीछे फोन पर बात कर रहे किसी आदमी की स्थिति की तुलना करते हे हम केवल होंठ हिलाना और हाथ का इशारा देख सकते हैं लेकिन हम सुन नहीं सकते .कुछ इस तरह के दृष्टिकोण से absurd नाटको के द्रश्य होते हे ऐसे ही अनुभवों को प्रदान करने औ रखोजने का प्रयास थे absurd नाटक.